(Case) Karak Kise Kahte Hain – कारक किसे कहते हैं

Karak Kise Kahte Hain – कारक किसे कहते हैं इस प्रश्न का उत्तर हिन्दी व्याकरण पढ़ने वाले विद्यार्थी खोजते हैं। अगर आप भी कारक के संबंध में अच्छी और विस्तृत जानकारी चाहते हैं तो यहाँ से पढ़ सकते हैं।

कारक हिन्दी व्याकरण का एक हिस्सा है जो वाक्य में प्रयोग होने वाले चिन्हों के रूप में आता है। यहाँ कारक की परिभाषा, कारक के भेद, कारक चिन्ह, कारक के उदाहरण आदि की चर्चा की गई है।

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कारक किसे कहते हैं – Karak Kise Kahte Hain

क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले वे सभी शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम के रूप होते हैं उन्हें कारक कहते हैं। अर्थात कारक संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का वह रूप होता है जिसका सीधा सम्बन्ध क्रिया से होता है।

कारक की परिभाषा – Karak ki Paribhasha

कारक को इस रूप में परिभाषित किया जाता है, “कारक का मतलब होता है किसी कार्य को करने वाला। यानी जो भी किसी क्रिया को करने में मुख्य भूमिका निभाता है, उसे हम कारक कहते हैं।”

  • जुगनू रामायण पढ़ता है।
  • मोहन राजू के लिए बल्ला लाया है।
  • तुम मनीषा को क्या पढ़ाते हो?

कारक के भेद – Karak ke Bhed

कारक के सामान्य रूप से आठ भेद होते हैं, जो निम्न हैं-

1. कर्ता कारक (Karta Karak)

जो वाक्य में कार्य को करता है, उसे कर्ता कारक कहा जाता है। कर्ता वाक्य का वह रूप होता है जिसमें कार्य को करने वाले का पता चलता है। कर्ता कारक का विभक्ति चिह्न ‘ने’ होता है।

2. कर्म कारक (Karm Karak)

वो वस्तु या व्यक्ति जिस पर वाक्य में की गयी क्रिया का प्रभाव पड़ता है, उसे कर्म कारक कहा जाता है। कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ होता है।

3. करण कारक (Karan Karak)

वो साधन जिससे कोई क्रिया होती है, उसे करण कारक कहा जाता है। यानी कि जिसकी मदद से किसी काम को अंजाम दिया जाता, उसे करण कारक कहा जाता है। करण कारक के दो विभक्ति चिह्न होते हैं- ‘से’ और ‘के द्वारा’।

4. सम्प्रदान कारक (Sampradan Karak)

सम्प्रदान का मतलब ‘देना’ होता है। जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए, तो उस स्थान पर सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान कारक का विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ और ‘को’ है।

5. अपादान कारक (Apadan Karak)

जब संज्ञा या सर्वनाम के किसी रूप से किन्हीं दो चीज़ों के अलग होने का बोध होता है, तब उस स्थान पर अपादान कारक होता है। अपादान कारक का भी विभक्ति चिह्न ‘से’ होता है। ‘से’ चिह्न करण कारक का भी होता है लेकिन वहां इसका अर्थ साधन से होता है। यहाँ ‘से’ का अर्थ किसी चीज़ से अलग होने को दर्शाता है।

6. संबंध कारक (Sambandh Karak)

इस कारक के नाम से ही पता चल रहा है कि यह किन्हीं वस्तुओं में संबंध को दर्शाता है। संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो हमें किन्हीं दो वस्तुओं के बीच संबंध का बोध कराता है, उसे संबंध कारक कहा जाता है। संबंध कारक के कई विभक्ति चिह्न हैं, जैसे- ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘ना’, ‘ने’, ‘नी’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’।

7. अधिकरण कारक (Adhikaran Karak)

संज्ञा का वो रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहा जाता है। इसके विभक्ति चिह्न ‘में’ और ‘पर’ होते हैं।

8. संबोधन कारक (Sambodhan Karak)

यह संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप है जिससे किसी को बुलाने, पुकारने या बोलने का बोध होता है, संबोधन कारक कहा जाता है। संबोधन कारक की पहचान करने के लिए ‘!’ इस चिह्न का इस्तेमाल किया जाता है। संबोधन कारक के विभक्ति चिह्न ‘अरे’, ‘हे’, ‘अजी’, ‘ओ’, ‘ए’ होते हैं।

कारक चिह्न – Karak Chinha

कारक का वह रूप जिससे क्रिया के संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ संबंध का बोध होता हो, वो ‘कारक चिह्न’ कहलाता है। सभी कारकों का अपना एक चिह्न ज़रूर होता है।

कारककारक चिह्न
कर्ता कारकने
कर्म कारकको
करण कारकसे, के द्वारा
सम्प्रदान कारकको, के लिए
अपादान कारकसे
संबंध कारकका, के, की, ना, नी, ने, रा, रे, री
अधिकरण कारकमें, पर
संबोधन कारकऐ !, हे !, अरे !, अजी !, ओ !

कारक के उदाहरण सहित भेद – Karak ke Udaharan Sahit Bhed

कर्ता कारक Karta Karak

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं। इसका चिन्ह ’ने’ कभी कर्ता के साथ लगता है, और कभी वाक्य में लुप्त होता है। कर्ता कारक उदाहरण –

  1. ऊषा ने रामायण पढ़ी।
  2. मानिया क्रिकेट खेलता है।
  3. कबूतर उड़ता है।
  4. जग्गू ने पत्र पढ़ा।
  5. जुगेंद्र किताब पढ़ता है।
  6. रमेश ने पत्र लिखा।
  7. अध्यापक ने विद्यार्थियों को पाठ पढ़ाया।
  8. कृष्ण ने अर्जुन की सहायता की थी।
  9. सीता सेव खाती है।
  10. भोला जलेबी खाता जाता है।
  11. भालू जंगल में घूम रहा है।

जहाँ पर कर्ता प्रधान हो, वहाँ पर कर्ता कारक होता है।

जैसा उदाहरण से समझा जा सकता है कि, वाक्य मे पूर्ण रूप से केवल और केवल कर्ता ही प्रधान है। अतः यहाँ पर कर्ता कारक होगा।

Karm Karak – कर्म कारक (को)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का प्रभाव या पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ ’को’ विभक्ति आती है। इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी वाक्यों में ’को’ विभक्ति का लोप भी होता है।

कर्म कारक के उदाहरण

  1. उसने मंगल को पढ़ाया।
  2. पुलिस ने चोर को पकड़ा।
  3. गाँव वालों ने डाकुओं को भगाया।
  4. राम ने कैनली को मारा।
  5. माँ बच्चे को सुलाती है।
  6. रानी पुस्तक पढ़ रही है।
  7. परदीप ने राधा को बुलाया।
  8. मेरे द्वारा जादू चलाया गया।
  9. कृष्ण ने रावण को नहीं मारा।
  10. राम को बुलाओ।
  11. माँ बच्चे को सुला रही है।
  12. नीति को बरेली घूमना था।
  13. दादू ने रहीम से कहा।
  14. मोहन ने कविता से पूछा।
  15. नीलम ने किरण से पूछा।

’कहना’ और ’पूछना’ के साथ ’से’ प्रयोग होता हैं। इनके साथ ’को’ का प्रयोग नहीं होता है , जैसे –

यहाँ ’से’ के स्थान पर ’को’ का प्रयोग उचित नहीं है।

जहाँ पर कर्म प्रधान हो वहाँ पर कर्म कारक होता है।
नोट : बुलाना, सुलाना, जगाना, भगाना, कोसना, पुकारना क्रियाओं मे कर्म कारक लगता है। इसकी पहचान ‘को’ है।

यहाँ पर कर्ता के क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है।

करण कारक – Karan Karak (से)

जिस साधन से अथवा जिसके द्वारा क्रिया पूरी की जाती है, उस संज्ञा को करण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान ’से’ अथवा ’द्वारा’ है। करण कारक के उदाहरण –

इसके पहचान (से, के द्वारा) से समझा जा सकता है। यह साधन के रूप मे प्रयुक्त होता है। जैसे –

सह (साथ मे) के योग से तृतीया विभक्ति करण कारक का प्रयोग होता है। जैसे –

  1. मनोज गेंद से खेलता है।
  2. आदमी चोर को लाठी द्वारा मारता है।
  3. मंगल गाड़ी चलाता है।
  4. राम बल्ले से खेलता है।
  5. हम आँखों से देखते हैं।
  6. तुम बाल्टी से मिट्टी भरती हो।
  7. पतारू पैर से लंगड़ा है।
  8. पिता पुत्र के साथ आता है।
  9. छात्रों को उपाधि साथ दी जाती है।
  10. छटा स्वभाव से दयालु है।

सम्प्रदान कारक (सहायता के रूप मे देना)

जिसके लिए क्रिया की जाती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक ’को’ भी प्रयुक्त होता है, किन्तु उसका अर्थ ’के लिये’ होता है।

करण कारक के उदाहरण

  1. सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।
  2. हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
  3. माँ बच्चे को खिलौना देती है।
  4. माँ बेटे के लिए सेब लायी।
  5. चयन ने राम को गाड़ी दी।
  6. मैं सूरज के लिए चाय बना रहा हूँ।
  7. मैं बाजार को जा रहा हूँ।
  8. भूखे के लिए रोटी लाओ।
  9. वे मेरे लिए उपहार लाये हैं।
  10. सोहन रमेश को पुस्तक देता है।

उपरोक्त वाक्यों में ’मोहन के लिये’ ’पढ़ने के लिए’ और बच्चे को सम्प्रदान  है

सम्प्रदान की पहचान ‘के लिए’ और ‘को’ होता है। जिसे कुछ दिया जाता है और जिसके लिए कुछ कार्य किया जाता है, वहाँ पर सम्प्रदान होता है। के वास्ते, के हित आदि प्रत्यय वाले शब्द भी सम्प्रदान होते हैं। जैसे –

  • हरि कविता को रुपये देता है। (सहायक के रूप मे)
  • राजा ब्राम्हण को गाय देता है।
  • बालक के लिए मिटाई लाओ।
  • अध्यापक ने छात्र को पुस्तक दी।
  • राम के हित मे बानर सेना युद्ध लड़ें।

नोट : जहाँ पर जिसको कोई वस्तु प्रिय लगती है, वहाँ पर चतुर्थी विभक्ति सम्प्रदान कारक होता है। जैसे –

  • मोहन को रसगुल्ले अच्छे लगते है।
  • सीता को गाना अच्छा लगता है।
  • हरि को संगीता अच्छी लगती है।

सुत्र – नमः स्वस्ति (कल्याण) स्वाहा स्वधा अलं (पर्याप्त) वषट

  • गुरु को सदर प्रणाम
  • आपका कल्याण हो
  • पित्रों के लिए स्वधा
  • पहलवान पहलवान के लिए पर्याप्त है
  • हरि राक्षसों के लिए पर्याप्त हैं

अपादान कारक – Apadan Karak (पंचमी विभक्ति)

अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना मालूम चलता हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। करण कारक की तरह अपादान कारक का चिन्ह भी ’से’ है, परन्तु करण कारक में इसका अर्थ सहायता होता है और अपादान में अलग होना होता है। अपादान कारक के उदाहरण –

  1. हिमालय से गंगा निकलती है।
  2. वृक्ष से पत्ता गिरता है।
  3. राहुल के हाथ से फल गिरता है।
  4. गंगा हिमालय से निकलती है।
  5. लड़का छत से गिरा है।
  6. पेड़ से पत्ते गिरे।
  7. आसमान से बूँदें गिरी।
  8. वह बिल्ली से डरता है।
  9. घुड़सवार घोड़े से गिर पड़ा।

इन वाक्यों में ’हिमालय से’, ’वृक्ष से’, ’छत से ’ अपादान कारक है।

स्वयं से अलग होने वाले ध्रुव मे पंचमी विभक्ति अपादान कारक है। जैसे –

  • वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
  • छत से ईंट गिरा।
  • बिल्ली छत से कूदी।
  • चूहा बिल से निकला।
  • गंगा हिमालय से निकलती है।

सम्बन्ध कारक – Sambandh Karak

संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का सम्बन्ध दूसरी वस्तु से जाना जाये, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान है – ’का’, ’की’, के।

सम्बन्ध कारक के उदाहरण

  •  झा की किताब मेज पर है।
  •  हेमा का घर दूर है।

सम्बन्ध कारक क्रिया से भिन्न शब्द के साथ ही सम्बन्ध सूचित करता है

यह सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है। पहचान – का, के, की, रा, रे, री।

  • यह गंगा का जल है।
  • बनिया की पुस्तक कहाँ है।
  • तुम्हारी किताब वहाँ नही हैं।

अधिकरण कारक – Adhikaran Karak

संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान है ’में’, ’पर’ होती है ।

अधिकरण कारक के उदाहरण

  • घर पर बिटिया है।
  • घोंसले में चिङिया के बच्चे है।
  • सड़क पर मोटरगाड़ी खड़ी है।

यहाँ ’घर पर’, ’घोंसले में’, और ’सङक पर’, अधिकरण  है :-

किनारे, आसरे, दिनों, यहाँ, वहाँ समय आदि के लिए अधिकरण कारक लगता है। जैसे –

  • जिस समय वह आया था उस समय मैं नही था।
  • वह द्वार-द्वार भीख माँगता रहा।
  • इन दिनों वह बनारस है।
  • वह संध्या समय नदी किनारे जाता है।
  • नदियों मे नावें चलती है।

नोट ; यदि किसी को अपने समुदाय मे श्रेष्ठ या विशिष्ट बतलाया जाता है, तो वहाँ अधिकरण लगता है। उदाहरण –

  • कवियों मे कबीर श्रेष्ठ हैं।
  • बालकों मे राम श्रेष्ठ है।

संबोधन कारक – Sambodhan Karak – हे!, अरे!

संज्ञा या जिस रूप से किसी को पुकारने तथा सावधान करने का बोध हो, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसका सम्बन्ध न क्रिया से और न किसी दूसरे शब्द से होता है। यह वाक्य से अलग रहता है। इसका कोई कारक चिन्ह भी नहीं है।

सम्बोधन कारक के उदाहरण

  • खबरदार !
  • मरीना को मत मारो।
  • सुधा! देखो कैसा सुन्दर दृश्य है।
  • लड़के! जरा इधर आ।

किसी को किसी काम के लिए चिल्लाना, बुलाना, बोलना या पुकारने का संज्ञान (बोध) होना संबोधन कारक को दर्शाता है।

संबोधन को ! चिन्ह से प्रदर्शित किया जाता है। इस चिन्ह को अँग्रेजी मे exclamation mark कहते हैं। इसकी पहचान – अरे!, हे!, ओह!, शाबाश!, आदि।

  • अरे! ये तुमने क्या कर दिया?
  • ओह! आकाश आउट हो गया।
  • हे राम! ये क्या हो गया।

कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अंतर – Karm Karak aur Sampradan Karak Mein Antar

कर्म और सम्प्रदान कारक में अंतर निम्नलिखित है

  • इन दोनों कारक में ‘को’ विभक्ति का प्रयोग होता है। 
  • कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है।
  • जैसे -(i) विकास ने सोहन को आम खिलाया।
  • (ii) मोहन ने साँप को मारा।
  • (iii) राजू ने रोगी को दवाई दी।
  • (iv) स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।

करण कारक और अपादान कारक में अंतरKaran Karak aur Apadan Karak mein Antar

करण और अपादान कारक में अंतर निम्नलिखित है

  • करण और अपादान दोनों ही कारकों में ‘से’ चिन्ह का प्रयोग होता है।
  • परन्तु अर्थ के आधार पर दोनों में अंतर होता है।
  • करण कारक में जहाँ पर ‘से’ का प्रयोग साधन के लिए होता है, वहीं पर अपादान कारक में अलग होने के लिए किया जाता है।
  • कर्ता कार्य करने के लिए जिस साधन का प्रयोग करता है उसे करण कारक कहते हैं। 
  • लेकिन अपादान में अलगाव या दूर जाने का भाव निहित होता है।

जैसे –
(i) मैं पेन से लिखता हूँ।
(ii) जेब से मोबाइल गिरा।
(iii) बालक खिलौने से खेल रहे हैं।
(iv) मानिता छत से गिर पड़ी।
(v) गंगा हिमालय से निकलती है।

आशा करते हैं कि कारक किसे कहते हैं – Karak Kise Kahte Hain यह आपको पूरी जानकारी मिली होगी।

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