संस्कृत के शब्द रूप – Shabd Roop in Sanskrit

Last updated on May 7th, 2023 at 03:24 am

Shabd Roop in Sanskrit – संस्कृत के शब्द रूप व्याकरण में प्रयोग किए जाते हैं। इन शब्द रूपों का प्रयोग वाक्य बनाने के लिए किया जाता है। संस्कृत में किस प्रकार शब्द रूप का प्रयोग वाक्य में किया जाता है आप यहाँ से पढ़ सकते हैं।

वाक्य की सबसे छोटी इकाई को शब्द कहते हैं। शब्दों के अनेक रूप (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि) होते हैं। व्याकरण की भाषा में क्रियापदों को छोड़कर वाक्य के अन्य पदों को नाम कहा जाता है। इस प्रकार किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव (क्रिया) आदि का बोध कराने वाले शब्दों को संज्ञा कहते हैं।

संस्कृत भाषा में प्रयोग करने के लिए इन शब्दों को ‘पद’ बनाया जाता है। संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों को पद बनाने हेतु इनमें प्रथमा, द्वितीया आदि विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। इन शब्दरूपों ( पदों) का प्रयोग (पुल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग तथा एकवचन द्विवचन और बहुवचन में भिन्न-भिन्न रूपों में) होता है। इन्हें सामान्यतया शब्दरूप कहा जाता है।

संज्ञा आदि शब्दों में जुड़ने वाली विभक्तियाँ सात होती हैं। इन विभक्तियों के तीनों वचनों (एक, द्वि, बहु) में बनने वाले रूपों के लिए जिन विभक्ति-प्रत्ययों की पाणिनि द्वारा कल्पना की गई है, वे ‘सुप्’ कहलाते हैं। इनका परिचय इस प्रकार है।

ये प्रत्यय शब्दों के साथ जुड़कर अनेक रूप बनाते हैं। इन विभक्तियों के अतिरिक्त सम्बोधन के लिए भी प्रथमा विभक्ति के ही प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है, किन्तु सम्बोधन एकवचन में प्रथमा एकवचन से रूपों में अन्तर होता है। रूप निर्देश से रूपभेद को स्पष्ट किया गया है—

शब्दों के विभिन्न रूपों में भेद होने के कारण ‘संज्ञा’ आदि शब्दों को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है—

  1. संज्ञा शब्द
  2. सर्वनाम शब्द
  3. संख्यावाचक शब्द

संज्ञा शब्दों के अन्त में ‘स्वर’ अथवा व्यञ्जन होने के कारण इन्हें पुन : दो वर्गों में रखा जा सकता है।

स्वरान्त (अजन्त) अर्थात् जिन शब्दों के अन्त में अ, आ, इ, ई आदि स्वर होते हैं, उन्हें स्वरान्त कहा जाता है। इनका वर्गीकरण इस प्रकार है अकारान्त, आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त, ऊकारान्त, ऋकारान्त, एकारान्त, ओकारान्त तथा औकारान्त आदि। यथा— बालक, गुरु, कवि, नदी, लता, पितृ, गो आदि।

व्यञ्जनान्त (हलन्त) जिन शब्दों के अन्त में क्, च्, ट्, त् आदि व्यञ्जन होते हैं, उन्हें व्यञ्जनान्त कहा जाता है। ङ्, ञ, ण, य् इन व्यञ्जनों को छोड़कर प्राय : सभी व्यञ्जनों से अन्त होने वाले शब्द पाए जाते हैं। इनमें भी च्, ज्, त्, द्, ध्, न्, श्, ष्, स् और ह् व्यञ्जनों से अन्त होने वाले शब्द अधिकतर प्रयुक्त होते हैं। अत : इनकी गणना चकारान्त, जकारान्त, तकारान्त, दकारान्त, धकारान्त, नकारान्त, पकारान्त, भकारान्त, रकारान्त, वकारान्त, शकारान्त, षकारान्त, सकारान्त, हकारान्त आदि रूपों में की जाती है, यथा— जलमुच्, भूभृत्, श्रीमत्, जगत्, राजन्, दिश्, पयस् आदि।

Shabd Roop in Sanskrit

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